Wednesday, 29 April 2015

माँ --- इश्वर का ममतामयी रूप...
राजा कठोर हो सकता है , दंड दे सकता है, पिता मुंह मोड़ सकता है, दुनिया दगा दे सकती है पर माँ?.........माँ अपने संतान को हर हाल में अपने कलेजे से लगाये रखती है....खुद के जीवन और प्राण की बाजी लगा देती है पर अपने कलेजे के टुकड़े को कोई दुःख होने नहीं देती है..माँ का ऋण कोई कभी नहीं उतार सकता है.....
एक साधक थे..उनको गुरुदेव ने ग़ज़ल, कव्वाली और भजन रचने और गाने की विशेष शक्ति दिया था .......पहले वो बाजारू औरतों के साथ कोठों पर गाया करते थे....गुरु देव के इस कृपा का बखान वो सब के बीच कर देते थे....पूज्य गुरुदेव ने उनसे कहा की इन बातों का खुलासा करना इस रूहानी रास्ते के साधक को लाजमी नहीं है...मत किसी से इसका जिक्र किया करो....पर उनसे रहा नहीं जाता ..गुरुदेव की कृपा की चर्चा करते वक्त जबान फिसल जाती थी ...और गुरु देव के मना करने की बात भूल जाते....वो बड़े भावुक ह्रदय के साधक थे......पूज्य गुरुदेव नाराज हो गए...एक दिन सत्संग चल रहा था .....तो उन्होंने कहा पाल सिंह ...तुम मेरे सत्संग में मत आया करो...इसी वक्त यहाँ से उठ जाओ...श्री पाल सिंह जी क्या क्या करते?..उठ के चले गए...मगर जायें तो कहाँ जाये ?....चुपके से गुरु माता (हम उनको जिया माँ कहते हैं ) के पास kitchen में चले गए और उनसे सारी वृत्तान्त सुनाकर रोने लगे...माँ का दिल...नवनीत (मक्खन) से भी ज्यादा कोमल...तुरंत पिघल गया...उन्होंने कहा.... पिता ने निकाला है...माँ ने तो नहीं निकाला..फिर क्यों डरते हो?..क्यों रोते हो?...चुप हो जाओ और जाकर उस store room में छिप जाओ.
सत्संग खत्म हुआ...पूज्य गुरुदेव घर के अन्दर आये...काफी गुमसुम थे...चेहरे पर वो चमक नहीं थी...माँ से कहा...आज मैंने पाल सिंह को सत्संग से निकाल दिया ....वो मेरी बातों का उल्लंघन करता था...पर सोचता हूँ की वो कहाँ जायेगा?....मेरा दिल कहता है की वो जा नहीं सकता....मन बहुत दुखी है....
माँ ने कहा ...आप पिता हो... निकाल सकते हो...पर मैं तो माँ हूँ....कैसे निकालती..?
.और माँ ने आवाज लगायी..... "पाल सिंह बाहर आओ...."
श्री पाल सिंह जी आकर गुरुदेव के चरणों पर गिर गए...और फूट फूट के रोने लगे...पूज्य गुरुदेव के आँखों से भी आंसुओं की धारा प्रवाहित होने लगी....माँ तो पहले से ही द्रवित थीं...और उनके ह्रदय से भी श्री पाल सिंह साहब के लिए आशीर्वाद की धार फूट निकली.... सभी पुराने सत्संगी कहते हैं.......की पूज्य गुरुदेव और जिया माँ ने उसी वक्त श्री पाल सिंह जी को रूहानी दौलत से मालामाल कर दिया...
इसीलिए हम हिन्दुओं में माँ का स्थान पिता से ऊँचा रखा गया है...
हिन्दू धर्म महान है...हिन्दू लोग भी महान हैं...हमारे यहाँ कोई पिता-माता नहीं कहता...सभी कहते हैं...माता-पिता..
हिन्दू धर्म का एक एक शब्द रहस्यों से भरा है....
मेरे सभी हिन्दू भाइयों और बहनों को हार्दिक बधाई की हम सब इतने महान धर्म में पैदा हुए...
इसके लिए परम पिता परमेश्वर के श्री चरणों में कोटि कोटि धन्यवाद और नमन....