Thursday, 6 June 2013

पूज्य गुरुदेव का एक पत्र जिसमे उन्होंने सृष्टि के रहस्य को बातों बातों में खोल दिया

पूज्य गुरुदेव का एक पत्र जिसमे उन्होंने सृष्टि के रहस्य को बातों बातों में खोल दिया 
एटा 
30.4.1940

श्री गुरु महाराज अक्सर एक ग़ज़ल गाया करते थे  उसका पहला मिसरा  हमको याद है और वह यह है  :

"इचे शोरेस्त के दर दूर कमर में बीनम 
हमा आफाक पुर अर्ज फितन ओशर में बीनम "        

अर्थ:   मैंने आंख उठा कर देखा -- यह दिखलाई दिया कि सारे जहान  में जहां तक चाँद की रौशनी पहुँचती है -- एक शोर मचा हुआ है और फितना  व्  फिसाद  व्  शोर  ही चारों ओर दिखाई देते हैं   

यह दुनिया का नक्शा है जो उस महापुरुष ने खींचा है  दरअसल अगर खुदी की ऐनक उतार कर अकल की आँखों से देखा जाये तो यह सारा संसार ही एक वहम या ख्याल है  माया का एक खेल हो रहा है रूहें अपनी- अपनी बारी से अपना-अपना पार्ट अदा करती है और चली जाती है  इस खेल में झूठे रिश्ते भी कायम होते हैं -- कोई स्त्री बनती है, कोई पुत्र बनता है, कोई भाई और दोस्त बन के आता है कभी ख़ुशी की सीनरी (scenery) आती है, कभी रोने चिल्लाने का कोहराम सुनाई  देता है कभी अमीर और मालदार हो जाते हैं, कभी फकीर और दरिद्र बन जाते हैं  

कोई गुरु बनता है, कोई शिष्य बनता है  कोई बाप है , कोई बेटा है  कोई पैदा होता है और किसी की लाश जाती हुई दिखाई देती है  इनमे से कौन सच है ?  क्या दरअसल जो हो रहा है, वही ठीक है?  या यह सब स्वांग  है ? इस खेल में जो रिश्ते कायम हुए थे ठीक और कायम रहने वाले हैं या चाँद मिनट के हैं ? इस पर विचारो  खिलाड़ी खेल में बड़े बनते हैं, छोटे बनते हैं  आराम पाते  हैं,  तकलीफ उठाते हैं हँसते हैं, रोते हैं, वगैरह वगैरह।  मगर दिल में यह जानते रहते हैं कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है  यह किसी के हुकुम से हम कर रहे हैं और इसका हमारी जात से कोई ताल्लुक नहीं है  बिलकुल ये ही दुनिया की हालत है  यहाँ कौन किसका है ?  चंद  रूहें मिलकर एक खेल रचती है  जब तक मालिक कहता है -- अच्छा या बुरा -- वह खेल खेलती है और दूसरा हुकुम मिलते ही बंद कर खामोश हो जाती है  जब ऐसा ही है तो किसको पाप  कहा जाये और किसको पुण्य कहा जाये या शबाब ? किसमें  ख़ुशी मनावे और किसमें  रंज ?  यह तो सब झूठा व्यापार है  मनुष्य खेलते   हुए अपने  को भूल जाता है और अपने को भूलते ही दूसरे की हस्ती भी समझ में नहीं आती  बस वह ख़ुशी और रंज के भंवरों में गोते खाने लगता है  मोह और शोक की बेड़ियाँ उसके हाथों में आ जाती है और वह जकड़ जाता है  खेल में कौन अपना था ? कौन पराया था ?  किसने पाप किया ? कौन सबाब कमाने वाला था ? एक को हुक्म मिला अच्छा काम करो वह खुश हो लिया  तारीफ़ मिली, इज्जत दी गयी  उसने समझा हम कोई बड़े आदमी बन गए  यह मूर्खता है, अज्ञानता है, झूठी ख़ुशी है  दूसरे को बुराइयों पर तमाशा करने की ड्यूटी बोली गयी । ऐब करने लगा -- सजा भी मिली, रोने भी लगा । सब बुरी निगाह से देखने लगे । कई दुश्मन भी बन गए  मगर उसकी जात खास पर इनका क्या असर हुआ ? क्या यह गुनहगार है या पाक और पवित्र है ? ज्यादा तफसील में जाने की जरुरत नहीं है  तुम अक्लमंद हो  इन फिकरों को समझो और अपनी निगाह ऊँची करो  भाई हो या लड़का हो वह जो करना चाहे उसे करने दो  उसके कर्ता धर्ता तुम नहीं हो तुम अपनी हस्ती समझो और अपने कल्याण की राह तलाश करो  जो अच्छा करेगा मालिक उसको इनाम देगा  जो बुरा करेगा उसको सजा जरुर मिलेगी  हम अपने को क्यों इन झगड़ों में डालें और अपना रास्ता खोटा  करें ?  चंद  रूहें इकट्ठी होती हैं, हम उनसे मुहब्बत करते हैं, उनकी खिदमत करते हैं, उन्हें आराम पहुंचाते हैं मगर उन्हीं के मोह में पड़कर अपने लिए परेशानी लेने की तुम्हें क्या जरुरत है ? जो जैसा करेगा या कर आया है उसके बदले में सजा और जज पायेगा -- हम को इन सारी खुराफात से क्या मतलब है ? सवाल हो सकता है कि  फिर अच्छे रास्ते पर चलने और उपदेश देने और दूसरों को सँभालने की क्या जरुरत है ? जवाब यह है कि  जरुरत कुछ  नहीं है   सिर्फ खुदी का पर्दा हटाने और उसके वहम को दूर करने के लिए यह सब खेल रचे  जाते हैं  दरअसल तो यह भी झूठे और वह भी झूठे  जैसे लोहा को लोहा ही  काटता  है वैसे  ही झूठ को झूठ से और वहम को वहम से दूर किया जाता है   जहर का इलाज जहर ही है   दो  माह में तुमने दो हालतें देखी  -- एक ख़ुशी देने वाली थी दूसरी रंज और शोक में डुबोने वाली थी । यह सब तुम को उठाने ही आई  थी । उठो और  असलियत का पता लगाओ  झूठे झमेले में अपने को न डालो   तुम  तेजी से आगे बढ़   रहे थे फिर बढ़ो  जो साथी पीछे रहता हो उसे छोड़ दो और चले चलो  यह सब मालिक के ऊपर छोड़ दो । तुमको अपना ही बोझ क्या कम है जो दूसरों का और लादते   हो ? इश्वर की लीला किसको मालूम पड़ी  है ? और उसके कामों को किसने रोक पाया  है ? देखते रहो  और चलते  चलो  कुछ नहीं यह सब झूठा  व्यव्हार हो रहा था  यही  मनुष्य धर्म है।   धैर्य से काम लेना घबरा मत उठना   आत्मा संयोगवश ऐसे ही आती है और चली जाती है  यह  चक्र चला  ही करता है 
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