पूज्य गुरुदेव की भूले मनुष्यों को चेतावनी
तुम्हारा शरीर केवल धन कमाने पेट भरने के लिए ही नहीं बनाया गया, सारा समय इसमें ही मत नष्ट करो। ईश्वरीय आज्ञा का उल्लंघन कर संसार ही में लिप्त न हो जाओ; आत्मिक उन्नति करो। सच्चे सुख और अनिर्वचनीय हर्ष की खोज करो, मानुषी जीवन का यही कर्त्तव्य है। जो लोग शरीर के भरण-पोषण में ही लगे रहेंगे तथा इन्द्रियों के वशीभूत हो विषय वासना में ही लिप्त रहेंगे उन्हें सर्वेश्वरी विश्व व्यापिनी महामाया काली अपने दहकते हुए त्रिशूल से दग्ध करेगी, वह दुःख सागर में ढकेल दिए जायेंगे। भूले मनुष्यों तैयार हो जाओ, वह समय निकट आ रहा है कि जब जगद माता प्रकृति देवी ( Nature) तुमको सुखों से वंचित कर विपत्तियों का पहाड़ तुम्हारे ऊपर गिराएगी, उस समय तुम्हारे रोने और विलाप करने से कुछ न होगा, वह सजा बिना दिए न छोड़ेगी।
अभी समय है, कहो – माँ ! हमारी भूल से जो जो अपराध हम से हुए उनको क्षमा करो, हमारे विचार शुद्ध करो और उनमें शक्ति दो, हम तेरी शरण आये हैं। हम आपकी आज्ञाओं का पालन नहीं कर सकते, इसमें हमारा केवल इतना ही अपराध है कि हमने तेरा सहारा नहीं लिया अब तक अपने ही बल भरोसे पर कूदते रहें और इसी लिए आज हमारी यह दशा हो रही है। हमने तेरे महत्व को नहीं जान पाया। हम अभी तक यही समझते रहें कि मनुष्य अपने उद्योग से सभी कुछ कर सकता है। आज यह समझ आई है कि बिना तेरी दया और कृपा के वह सफलता नहीं प्राप्त कर सकता, वह तेरे बंधन में है। संसार तेरा बंदी-गृह है, इससे शीघ्र हमारी मुक्ति कर। माँ ! तैने कृष्ण रूप धारण कर अर्जुन से कहा था :---
“सर्व धर्मानिपरित्यज्य मामेकं शरणं व्रज
अहं तवा सर्व पापेभ्यो मोक्षयिस्यामी मा शुच:”
(अर्थ: तुम सर्व धर्मों को छोड़ कर एक मेरे शरण आ जाओ, मैं तुम्हें सब पापों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करूँगा)
ऐसे ही मुझसे कह। माँ ! ऐसे ही प्यारे शब्द तेरे मुख से सुनना चाहता हूँ, परन्तु तु मेरे लिए क्यों कहने लगी। क्या मैं तेरा आज्ञाकारी पुत्र हूँ? मैंने कब तेरी परवाह की थी? सुनो माँ, अब तक जो हुआ सो हुआ, अब यह प्रण करता हूँ कि तेरी आज्ञानुसार चलूँगा, धर्मपूर्वक चलने के लिए उद्योग करूँगा परन्तु तेरे सहारे की आवश्यकता है इसके बिना पार नहीं हो सकूंगा।
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