कुछ याद रखने वाले नुस्खे (एक संकलन)
(१) सुबह उठते वक्त : यह हमारा अनुभव है कि प्रातः काल उठते ही थोड़ी देर कोई यदि अपने गुरु का ध्यान करे और ऐसा अनुभव करे कि वह सम्मुख खड़े मुझे देख रहे हैं, मेरी रक्षा कर रहें हैं, मेरी अच्छी व बुरी सब बातों को जानते हैं, मेरे सुख व दुःख की उनको खबर है, वह अवश्य मेरे संकटों और विपत्तियों को हटाएंगे इत्यादि, तो तमाम दिन उसे शांति और प्रसन्नता मिलती रहेगी और कई काम भी जिनको गुरु शक्ति उचित समझेगी उस दिन उनको पूरा कर देगी। परन्तु गुरु भी पूर्ण होना चाहिए। ऐसे ही गुरु के लिए योग सूत्र में आया हुआ है ‘वीतरागविषयम वा चित्तम’। (साधना के अनुभव, पृ ३२७)
(२) कुविचार के हमले के वक्त : हमला होजब किसी साधक पर बाहर अथवा आंतरिक कुविचार का हमला हो तो उससे मुकाबिला करके उसे हटाने का उद्योग नहीं करना चाहिए। ऐसा करने पर उसकी प्रतिक्रिया आरंभ हो जाती है। वह और भी अधिक तेजी से मुह फाड़ के हमें खाने दौडती है। इसमें समय और शक्ति व्यर्थ बर्बाद होती है। उपाय यह है कि उसके प्रतिपक्ष (मुखालिफ) विचार को दिमाग में भर लें, उसी पर विचार करें। ऐसा करने पर पहली शक्ल हट जाती है, साधक का मस्तिष्क शुद्ध और निर्मल बन जाता है। जो लोग ऐसा न कर सकें उनके लिए एक यह भी हो सकता है कि ख्यालात चाहे अच्छे हों या बुरे, बाहर से आये हैं या अंदर से उभर खड़े हुए, इनमें से किसी बात की ओर ध्यान ना दें और अपना काम करते रहें। इस तरह विचारों पर तवज्जह न देने से स्वयं ही विचार जाते रहते हैं। अपना काम करने से तात्पर्य यह है कि अपने लक्ष्य के सिवाय किसी दूसरे विचार की ओर देखे ही नहीं, ऐसा सरोकार जब नहीं रखा जाता तो थोड़े दिन पीछे मन ऐसा बन जाता है जो बुरे विचारों को अपने में प्रवेश ही होने नहीं देता है।
संसार की प्रत्येक वस्तु हमजिंस (समान प्रकृति वाली वस्तु) को खींचती है, तुमने अपना मन जिस प्रकार के मैटर से बनाया है वैसा ही मैटर उसकी ओर आता है उसे बुराइयों से छुड़ा के अच्छाई के रास्ते में बढाओ, अच्छे सांचे में उसे ढालो, अच्छाइयां खिंच-खिंच के आएंगे इससे जीवन उच्च बन जायेगा। (साधना के अनुभव, पृ ३२६)
(३) किसी की बुराई दिखने पर : किसी मनुष्य की कोई कमजोरी देख के उसके प्रति दुर्भावना का हमारे अंदर उदय हुआ और उससे घृणा (नफरत) आई तो उसी समय उसके किसी शुभ अथवा अच्छे काम पर विचार करने लगें। (साधना के अनुभव, पृ ३२६-३२७)
(४) चिंताग्रसित होने पर : यदि हम किसी चिंता से ग्रसित हैं और यह फ़िक्र उसे परेशान कर रही है तो उस समय उसको उस परम हितैषी सर्व-रक्षक मातृ-शक्ति की ओर ध्यान देना चाहिए और उसके चरण कमलों में अपने को डाल देना चाहिए। जब तक कि मन में कोई स्फूर्ति होके चिंता दूर न हट जाये और खुशी एवं शांति न मिल जाये तब तक उस मंगलमयी की गोद में अपने को डाले रखना चाहिए। (साधना के अनुभव, पृ ३२७)
(५) चरण रज के लाभ : चरण रज से तात्पर्य उस मिट्टी से नहीं है जो गुरु के पार्थिव शरीर के पावों तले है उसके भी हमारे लिए महत्त्व है परन्तु चरण रज उस दिव्य प्रकाश को कहते हैं जो गुरु की चैतन्यमयी आत्मा से हर समय फूटता रहता है और उनके दिव्य शरीर के चारों ओर बिखरा रहता है जो मानसिक संकल्प से अपने शरीर पर इस दिव्य पराग को मल लेता है, उसी क्षण उसकी स्थूल, सूक्ष्म और कारण तीनों देह पवित्र हो जाते हैं दिव्य नेत्र खुल जाते हैं मार्जन के अर्थ मांजने के हैं अपने हृदय रूपी पात्र पर संकल्प से रोजाना इस रज को रगड़ो वह दमकने लगेगा उसकी कलोंच मिट जायेगी, वह साफ सुथरा बन जायेगा ऐसा पवित्र हृदय ही प्रभु का निवास स्थान बन जाता है (अमृत बिंदु पृ २, साधन, नवंबर, २००२)
(६) साधक की उन्नति की जाँच : जिसके स्वभाव में व्यवहार में शांति प्रसन्नता और प्रेम की झांकी हो, जो काम क्रोध-मद इत्यादि के वेगों को प्रसन्नता से सहन कर सके और उनके धक्के को शांति से रोक सके वही साधक उन्नतिशील समझा जाता है और इसी से उन्नति की जाँच की जाती है (सा के अनु पृ ४०९/१० वा संस्करण)
(७) अपने को सुधारने का नुस्खा : आपका लड़का गलत काम करता है, तो कभी मारते हैं, खाना बंद कर देते हैं नौकरों का वेतन काट लेते हैं तो उनमें फिर सुधार भी होते देखा गया है। क्या आपने कभी अपने कर्मों पर विचार किया है? क्या न्याय के दृष्टि से देखकर अपने को कुछ दंड भी दिया है? हम कुछ भी करें उन पर कभी नहीं विचारते। अपनी त्रुटियों को जो देखते हैं, गुरु से या भगवान से क्षमा प्रार्थी होते हैं, तो फिर वह सुधर जाते हैं। जो ऐसा नहीं करते वह घोर नरक में जाते हैं। (संतों की वार्ता)
(८) जीवन के काँटों को कैसे दूर करें :
किसी सत्पुरुष का विचार अपने में डाल लो। उनके एक ही विचार से तुम्हारे जितने कांटे (दुनिया के कांटे/विचारों के कांटे) पीड़ा दे रहे हैं सभी निकल जायेंगे।
सबसे पहले जब उठो तो गुरु अगर निकट नहीं हैं तो उनके फोटो को एक बार मस्तक झुकाकर उनकी दिव्य मूर्ति को हृदय में बिठा लो। उन्हें श्रद्धा से एक बार देख लोगे तो फिर ऐसी वैसी बात का आप पर असर नहीं होगा। आप तमाम जागतिक कष्टों से पूरे दिन बचे रहोगे। अगले दिन फिर उन्हें प्रणाम कर लो।
सत्संग से हमारा हृदय शुद्ध होने लगता है, धीरे धीरे परमात्मा दिखाई पड़ने लगता है। वो तो हृदय में हैं ही जब हृदय शुद्ध होता है तो हम उन्हें देखने लगते हैं।
जैसे बीज के उबाल देने से फिर वे नहीं जमते, ऐसे ही सत्संग में जीवन के सभी कांटे दग्ध हो जायेंगे।
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