हमारे सत्संग की प्रार्थनाएं
श्री गुरु वंदना
हे दीनबंधु दयाल गुरु ! केहि भांति तब गुण गाऊं मैं ।
तुम्हरे पवित्र चरित्र केहि विधि, नाथ कहि के सुनाऊँ मैं ।।
जिव्हा अपावन है मेरी, गुरु नाम कैसे लीजिए ।
मन फँस रहा भाव-जाल में, वह किस तरह प्रभु दीजिए ।।
धन-धान्य माया रूप है क्यों कर न्योछावर कीजिये ।
संसार सागर में फंसा गुरु-ध्यान कैसे कीजिये ।।
तन कैसे अर्पण कर सकूँ, वह तो महा पापी अधम ।
धन-धान्य औ मन देके गुरु तुमसे नहीं उद्धार हम ।।
श्रद्धा सुमिरनी भेंट करि, मैं दीन हो चरणों पड़ा ।
मैं पतित हूँ तुम पतित पावन, आपका है आसरा ।।
भव-सिंधु में हूँ फँस रहा गुरुदेव मुझे उठाइए ।
गहि बाँह दीनानाथ अपराधी को पार लगाइए ।।
जो दीन हो चरणों पड़े हे नाथ वे सारे तरे ।
तेरा भिखारी तुम बिना प्रभु आसरा किसका करे ।।
मैं दीन हूँ तुम दीनबंधु मैं अधम तुम नाथ हो ।
मैं हूँ अनाथ कृपानिधान तो तुम अनाथों के नाथ हो ।।
माता पिता सुत भ्रात भार्या कोई साथ न जायेंगे ।
उस पाक कुम्भी नरक में कोई न हाथ बंटाएंगे ।।
यह सोच के तब शरण आया अब ठिकाना है नहीं ।
बस पार कर दो मेरी नौका और अपना है नहीं ।।
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ईश स्तुति
हे जगनायक ! विश्व विनायक ! हे जगजीवन के जन हे ।
हे दुःख भंजन ! जन मन रंजन ! जय-जय आनंद के घन हे ।।
गुरु पितु माता, सब जग त्राता, मनुज रूप नर नागर हे ।
हे निर्गुण हे निराकार प्रभु ! निर्भय निगम निरंजन हे ।।
व्यक्त तुम्हीं अव्यक्त तुम्हीं हो, सत् चित आनंद रूप विभो ।
गुणागार गोतीत अगोचर अनुभवगम्य अजेय प्रभो ।।
सब के स्वामी अंतर्यामी पारब्रह्म परमेश्वर हे ।
करुणासागर सब गुण आगर सत् चित प्रेम निकेतन हे ।।
अंत का गीत
परमगुरु ! राम मिलावन हार ।
अति उदार मंजुल मंगलमय, अभिमत फलदातार ।। परम गुरु ।।
टूटी-फूटी नाव पड़ी मम, भीषण भव-नद धार ।। परम गुरु ।।
जयति-जयति जय देव दयानिधि ! वेग उतारो पार ।। परम गुरु ।।
मंत्र
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविण त्वमेव, त्वमेव सर्वम मम देव देव ।।
ओम सहनाववतु , सह नौ भुनक्तु , सहवीर्यं करवावहै ।
तेजस्विनाव धीतमस्तु , मा विद्विषावहै ।।
ओउम शांति: शांति: शांति:
(अर्थ – हे परमात्मन । मेरी और मेरे गुरु की साथ-साथ रक्षा कर। हम दोनों का साथ-साथ पालन कर। हम दोनों साथ-साथ शक्ति प्राप्त करें। हम दोनों की विद्या तेजोमयी हो। हम दोनों परस्पर प्रेम से रहें और तीनों प्रकार के कष्टों से बचे रहें। )
भंडारों में ध्यान शिविर में ध्यान से पहले गाई जाने वाली गुरु स्तुति
गुरुं प्रशान्तं भवभीतिनाशम, विशुद्धबोधं कलुषापहारम ।
आनंदरूपं नयनाभिरामम, श्री सत्यदेवं नितरां नमामि ।।
अज्ञाननाशं नित्य प्रकाशम, सच्चितस्वरुपम जगदेकमूर्तिम ।
विश्वाश्रयं विश्वपतिं परेशम, श्री सत्यदेवं नितरां नमामि ।।
स्वयंभुवं शांतमनन्तमाद्यम, ब्रह्मादिवंद्यं परमेशपूज्यम ।
कालात्मकं कालभुवं शरण्यम, श्री सत्यदेवं नितरां नमामि ।।
अणुमहान्तं सद्सत्परंच, योगैकगम्यं करुणावतारम ।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे, श्री सत्यदेवं नितरां नमामि ।।
भोगापवर्गं प्रतिदानशक्तम, बन्धुं सखायं सुहृदं प्रियंच ।
शांतिप्रदानं भवदुःखहीनम, श्री सत्यदेवं नितरां नमामि ।।
प्रेमाम्बुधिं प्रेमरसायनंच, प्रेमप्रदानं निधिमद्वितीयम ।
मृत्युन्जयं मृत्युभयापहारम, श्री सत्यदेवं नितरां नमामि ।।
ज्योतिर्मयं पूर्णमनन्तशक्तिं, संसारसारं हृदयेश्वरंच ।
विज्ञानरूपं सकलार्तीनाशम, श्री सत्यदेवं नितरां नमामि ।।
स्नेहं दयां वत्सलतां विधाय, चित्तम प्रमुग्धं कृत मत्र येन ।
तं दीननाथं भवसिंधुपोतम, श्री सत्यदेवं नितरां नमामि ।।
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